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हमारा अच्छा चाहने वाले को हम अक्सर बुरा क्यों समझ लेते है ?

प्रश्न: नमस्कार, हमारा अच्छा चाहने वाले को हम अक्सर बुरा क्यों समझ लेते है ?

एडवोकेट राज राठौड़ का जबाब ;

दरसअल ऐसा उन लोगो के साथ होता है ,जो लोगो को सही से पहचान नही पाते है उनको अपने और परायो में फर्क करना नही आता , अगर आपके साथ भी ऐसा होता है तो इसका यह मतलब कतई नहीं है कि आप अच्छे इंसान नही है बस अंतर इतना सा की या तो आप, कौन आपका शुभचिंतक है और कौन नही है इसको पहचान नही पाते है, या फिर आप बहुत भावुक इंसान है, जो सिर्फ भावनाओ से जीवन जीता है,अपना दिमाग का इस्तेमाल बहुत कम करता है।

इसे एक उदाहरण से समझे बचपन मे हमारे माता पिता, टीचर वगैहरा हम कोई गलती करने पर अक्सर डाट दिया करते थे है ना ? जो कि हमे उस समय बहुत बुरी लगती थी गुस्सा भी आता था उन पर लेकिन जरा सोच के देखे की क्या आज आपको उन पर गुस्सा आता है ? नही बिल्कुल भी नही आता होगा ?
पर क्यो ? क्योकि आज आप उस डाट फटकार का मतलब समझ गये है आज आपको पता है कि उन्होंने जो किया वो बहुत सही किया आपके फायदे के लिए किया। देखो डॉक्टर से आप बीमारी की दवा लेना सिर्फ इसलिए मना नही कर सकते कि वो कड़वी है आपको उसका टेस्ट पसन्द नही है ।आप जानते है यही कड़वापन आपकी बीमारी को ख़त्म करेगा। ठीक वैसे ही आपका शुभचिंतक हमेशा आप से प्यारी प्यारी मीठी मीठी बाते ही करे ऐसा नही होता है। जो आपका शुभचिंतक होगा वो कड़वा भी बोलेगा और आपको आने वाली परेशानियों से अवगत भी करवायेगा यही एक असल शुभचिंतक की पहचान है।

अब यह आपके ऊपर डिपेंड करता है कि आप उनकी बातों को कैसे लेते हैं इसे मामले में  मेरा अपना व्यक्तिगत और वकालत पैसे का अनुभव है कि बहुत कम लोग ही मुझे समझ पाते हैं क्योंकि मैं कड़वा भी बोलता हूँ एकदम नंगा सच्च बोल देता हूँ जो बहुत कम लोगो को हजम होता है। खैर इस विषय पर मै बहुत कुछ बोल सकता हूँ लेकिन उम्मीद करता हूं, आपको जबाब मिल गया होगा।

हरे कृष्ण, आपका दिन शुभ हो।

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